Life Lessons from Ramdas-Hanuman Story: Emotions, Perception & Mindfulness

Buddha
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🌸 Life Lessons from the Story of Ramdas and Hanuman Ji

(Science, Emotion, and Spiritual Psychology Together)

🌼 Introduction – जब भावनाएं दृष्टि को रंग देती हैं

कुछ कहानियाँ सिर्फ सुनने के लिए नहीं होतीं — वे हमारे मन के दर्पण होती हैं। “रामदास और हनुमान जी” की यह कहानी ऐसी ही है — इसमें भक्ति है, विनम्रता है, और सबसे गहरा psychological insight है:

जब मन में क्रोध या आवेग हो, तो दृष्टि भी रंग बदल लेती है।

आइए पहले इस कहानी को पूरे भाव से पढ़ते हैं, फिर देखते हैं कि इसमें मनोविज्ञान, mindfulness और emotional intelligence के कितने गहरे सूत्र छिपे हैं।

📖 The Full Story – रामदास और हनुमान जी की कथा

एक मैंने प्यारी कहानी सुनी है। रामदास राम की कथा कहते थे। कहानी है कि कथा वह इतनी प्यारी कहते थे कि हनुमान भी छिपकर सुनने आते थे— और उन्हें बड़ा मजा आता था कहानी सुनने में।

रामदास जिस भाव से कहते थे, जिस अहोभाव से कहते थे—हालांकि हनुमान तो प्रत्यक्षदर्शी थे, उन्होंने तो देखी थी कहानी होते हुए, मगर उनको भी सुनने में मजा आता था। रामदास के मुंह से सुनकर उनको भी बहुत-सी बातें पहली दफा दिखाई पड़नी शुरू हुई थीं। थे तो हनुमान जी ही! देखा जरूर होगा, मगर जब रामदास जैसे व्यक्ति अर्थ करें तो नयी-नयी अभिव्यंजनाएं होती हैं। नये फूल खिल जाते हैं।

जहां कुछ भी न था वहां मरुद्यान खड़े हो जाते हैं। मरुस्थल मरुद्यानों में बदल जाते हैं। शब्दों में नये-नये काव्य, नये-नये गीत, नये-नये स्वर प्रगट होने लगते हैं।

मगर एक दिन बहुत मुश्किल हो गयी। क्योंकि रामदास वर्णन कर रहे थे हनुमान जी का ही, कि हनुमान जी गये सीता से मिलने अशोकवाटिका में और उन्होंने अशोकवाटिका में यह देखा कि चारों तरफ सफेद ही सफेद फूल खिले हुए हैं— चांदनी के, जुही के, चमेली के— सफेद ही सफेद फूल।

अशोकवाटिका में सफेद ही सफेद फूल थे।

हनुमान जी ही ठहरे! यूं तो वे कम्बल वगैरह ओढ़कर छिपकर बैठे थे कि पूंछ वगैरह दिखाई न पड़ जाए किसी को। खड़े हो गये। भूल ही गए कि हम हनुमानजी हैं और हमको इस तरह बीच में खड़े नहीं होना चाहिए।

कहा कि —

“बस, और सब तो ठीक है, यह बात गलत है!”

रामदास जैसे लोग, इस तरह की कोई हरकत करे!... जैसे यहां कोई हनुमान जी खड़े हो जाएं!

तो रामदास ने कहा —

“चुप! चुपचाप बैठ जा!”

हनुमान जी से कह दिया कि चुपचाप बैठ जा!

रामदास जैसे फक्कड़ों का तो अपना हिसाब है। वह तो हनुमान जी को क्या, रामचन्द्र जी को कह दें कि —

“चुप! बीच-बीच में नहीं बोलना! शांति रखो!”

हनुमान जी ने कहा —

“अरे, हद हो गयी! पहले देखो कि मैं कौन हूँ! मैं खुद हनुमान हूँ और मुझसे तुम कह रहे हो कि चुप बैठ जा! मैं गया था अशोकवाटिका कि तुम गये थे? कि तुम्हारा बाप गया था? मैं गया था, और तुमसे कहता हूँ कि फूल सब लाल रंग के थे, सफेद नहीं थे! अपनी कहानी में बदलाहट कर लो!”

रामदास तरह के लोग तो बड़े अलग ढंग के होते हैं। उन्होंने कहा —

“तुम हनुमान हो या कोई, तमीज़ रखो, बदतमीज़ी नहीं चलेगी! उठाओ अपना कम्बल और शांति से बैठ जाओ! और मैं कहता हूँ कि फूल सफेद थे और कहानी में फूल सफेद ही लिखे जाएंगे, मेरी कहानी को कोई नहीं बदल सकता।”

हनुमान जी तो बहुत गुस्से में आ गये। उन्होंने कहा —

“मैं नहीं चलने दूंगा! तुम्हें मेरे साथ रामचन्द्र जी के पास चलना पड़ेगा। यह फैसला उन्हीं के सामने होगा। अब तुम मानते नहीं हो और मैं चश्मदीद गवाह हूँ।”

सारी जनता प्रभावित हो गयी कि बात तो ठीक है — हनुमान जी खुद खड़े हैं! अब जब ये कह रहे हैं, तो यह रामदास को क्या हुआ है? बहक गये हैं क्या?

अरे, बदल ले, इतनी-सी बात है! मगर रामदास जैसे लोग बदलते नहीं — चाहे कुछ भी हो जाए।

उन्होंने कहा —

“ठीक है, रामचन्द्र जी के पास चलो, सीता मैया के पास चलो — जहाँ चलना हो!”

हनुमान जी ने उन्हें अपने कंधे पर बिठाया और रामचन्द्र जी के पास ले गये।

रामचन्द्र ने कहा —

“हनुमान, पहले तो तुम्हें वहाँ जाना नहीं था। और गये अगर तुम, तो अपने कम्बल में छिपा रहना था। और अगर तुम्हें बात गलत जंच रही थी, तो एकांत में जाकर उनसे बात करनी थी। और फिर मुझसे भी पूछ लेना था, इसके पहले कि विवाद करो। रामदास जैसे आदमी से विवाद नहीं करना चाहिए।”

हनुमान जी बोले —

“हद हो गयी! आप भी इस तरह से बोल रहे हो! पक्षपात चल रहा है! न्याय का तो कहीं कोई हिसाब ही नहीं रहा! मैं गया अशोकवाटिका कि तुम गये थे? न तुम गये, न ये रामदास का बच्चा गया! मैं गया था! तुम हो कौन? यह मेरी भलमनसाहत है कि मैं तुम्हारे पास लाया!”

रामदास का हाथ पकड़कर कहा —

“चलो जी, सीता मैया के पास चलो! वही एक गवाह हैं, क्योंकि वे वहाँ रही थीं। इनको क्या पता? नाहक ही बीच में अड़ंगेबाजी कर रहे हैं।”

सीता के पास ले गये उनको।

सीता ने कहा —

“हनुमान, शांत हो जाओ, फूल सफेद ही थे। रामदास जैसे आदमी से जिद्द नहीं करनी चाहिए। ये कहते हैं तो सफेद ही थे।”

हनुमान थोड़े ठंडे हुए कि अब बड़ा मुश्किल हो गया मामला! अब तो कोई गवाह ही नहीं है! अब सीता भी बदल गयीं!

“जिसको मैं ही बचाकर लाया, और इतने उपद्रव किये — क्या-क्या नहीं सहा — और ये रामदास कौन सा खास काम कर दिया है जिसकी वजह से रामचन्द्र जी भी इसके साथ हैं, सीता भी कहती हैं कि फूल सफेद थे!”

हनुमान ने कहा —

“मैं इतना तो पूछ सकता हूँ कि ये सब मेरे साथ अन्याय क्यों हो रहा है?”

सीता ने कहा —

“अन्याय नहीं हो रहा है हनुमान, तुम समझे नहीं। तुम इतने क्रोध में थे कि तुम्हारी आँखों में खून भरा हुआ था, इसलिए फूल तुम्हें लाल दिखाई पड़े थे। फूल तो सफेद ही थे। तुम्हारी दृष्टि क्रोध से भभक रही थी, सुर्ख हो रही थीं तुम्हारी आँखें — मैंने तुम्हारी आँखें देखी थीं — आग जल रही थी उनमें, खून उतरा हुआ था, तुम पर खून सवार था, तुम्हें कैसे फूल सफेद दिखाई पड़ते? तुम्हें हर चीज़ लाल दिखाई पड़ रही थी। रामदास जो कहते हैं, ठीक कहते हैं, फूल सफेद ही थे। जब दृष्टि एक रंग से भरी हो, तो यह भूल हो जाना स्वाभाविक है। क्रोधित आदमी कुछ देख लेता है, शांत आदमी कुछ और देखता है। विचार से भरा हुआ कुछ देखता है। निर्विचार से भरा हुआ व्यक्ति कुछ और देखता है। यह समाधि का अनुभव है।

🧠 Psychological & Emotional Insights – विज्ञान के दृष्टिकोण से

🔥 1. Emotion Influences Perception

हनुमान जी ने फूल लाल देखे, क्योंकि उनकी आँखों में “क्रोध का रंग” था। Modern psychology कहती है कि emotions हमारे cognitive filters को बदल देते हैं।

  • जब हम angry होते हैं, amygdala overactive हो जाता है।
  • Prefrontal cortex (logic center) temporarily कमजोर पड़ जाता है।
  • Reality हमें distorted दिखती है।

👉 इसे कहते हैं Cognitive Distortion — हम चीज़ों को वैसी नहीं देखते जैसी वे हैं, बल्कि जैसी हमारी भावनाएं उन्हें रंग देती हैं।

🧩 2. The Role of Emotional Regulation

रामदास शांत थे — grounded और composed। उन्होंने react नहीं किया, बल्कि respond किया। यह है emotional regulation — भावनाओं को observe करना, suppress नहीं करना।

🧘‍♀️ 3. Mindfulness and Emotional Intelligence

Mindfulness का अर्थ है: “हर क्षण को बिना judgment के देखना, महसूस करना और स्वीकारना।” यह practice हमारे brain के emotional reactivity circuits को शांत करती है।

Emotional Intelligence के चार स्तंभ:

  • Self-awareness – अपनी भावनाओं को पहचानना।
  • Self-regulation – impulsive reactions को रोकना।
  • Empathy – दूसरों की स्थिति समझना।
  • Social skill – सम्मानपूर्ण व्यवहार बनाए रखना।

रामदास ने यह सब embodied किया — वे भाव में थे, पर भ्रम में नहीं।

💡 Practical Tips – Emotions को Master करने के Scientific तरीके

  • Pause Before Reacting: 5 seconds का विराम आपके logic center को सक्रिय करता है।
  • Label the Emotion: “मुझे गुस्सा आ रहा है” कहना amygdala की activity घटाता है।
  • Deep Breathing: 3 गहरी साँसें = lower stress hormones + clearer perception।
  • Reframe Thoughts: पूछिए — “क्या मैं सच देख रहा हूँ या अपनी भावनाओं का projection?”
  • Practice Daily Mindfulness: 10 मिनट ध्यान आपकी emotional clarity बढ़ाता है।

🌺 Conclusion – जब मन शांत हो, तब सत्य स्पष्ट होता है

सीता जी का अंतिम वाक्य इस कहानी का हृदय है —

“फूल तो सफेद ही थे, पर तुम्हारी दृष्टि क्रोध से लाल हो गयी थी।”

यह सिर्फ हनुमान के लिए नहीं, हम सबके लिए एक mirror है। जब हमारी दृष्टि किसी भावना — anger, fear, anxiety — से रंगी हो, तो दुनिया भी उसी रंग में रंग जाती है।

Spiritual Truth: “जब दृष्टि निर्विकार हो जाती है, तब ही सत्य प्रकट होता है।”
Scientific Truth: “Emotionally balanced mind sees reality more accurately.”

इसलिए —

  • Observe emotions, don’t become them.
  • Practice calm awareness daily.
  • Let the mind settle — और देखिए, कैसे जीवन के “सफेद फूल” स्वयं खिल उठते हैं। 🌸

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